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शिक्षा में इतिहास या राजनीति, कांग्रेस ने भविष्य की रक्षा के लिए कठिन निर्णय लिया

राजीव शुक्ला। भारत पर शासन के दौरान 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का पहला विभाजन किया तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वही बीज एक दिन पाकिस्तान के रूप में धरती के मानचित्र पर अंकित होगा। यह औपनिवेशिक सत्ता की “बांटो और राज करो” की नीति का परिणाम था। इस नीति ने धीरे-धीरे पूरे उपमहाद्वीप को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की राह तैयारी की।

 

विडंबना यह है कि 21वीं सदी में भी उसी नीति को अलग-अलग तरीकों से भुनाने की कोशिश की जा रही है। एनसीईआरटी का विशेष माड्यूल “विभाजन की त्रासदी” इसी प्रवृत्ति की एक कड़ी प्रतीत होता है। इसमें जिन्ना और माउंटबेटन के साथ-साथ कांग्रेस को भी भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया गया है। इसे समझना कठिन है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया और इससे किसके हित सधेंगे?

 

यह सच है कि विभाजन भारतीय इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक था। भारत विभाजन में लाखों लोग मारे गए, करोड़ों विस्थापित हुए और सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंची। इसी के साथ यह भी उतना ही सच है कि भारत के दुर्भाग्यपूर्ण और त्रासदी विभाजन का कारण केवल कुछ नेताओं के व्यक्तिगत निर्णय नहीं थे, बल्कि दशकों से पनप रही औपनिवेशिक नीतियां, सांप्रदायिक राजनीति और लंबे समय से चले आ रहे किस्म-किस्म के सामाजिक तनाव का नतीजा थे।

 

ऐसे जटिल ऐतिहासिक प्रसंगों का खतरनाक ढंग से सरलीकरण करके जिन्ना और माउंटबेटन के साथ कांग्रेस के माथे पर ठीकरा फोड़ना न केवल अन्याय है, बल्कि इतिहास को वर्तमान की राजनीति के हिसाब से मोड़ने का दुस्साहस भी है। इसका प्रतिकार किया जाना चाहिए। इतिहास वैसा ही पेश किया जाना चाहिए, जैसा घटिल हुआ हो। इतिहास का मतलब ही है कि ऐसा हुआ था।

 

यह एक वास्तविकता है कि कांग्रेस ने विभाजन की मांग कभी नहीं की। उसएनसीईआरटी का माड्यूल इतिहास की जटिलताओं को सरलीकृत करके वर्तमान की राजनीति के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास है। इस नए माड्यूल को भले ही किसी कक्षा में पाठ के तौर पर न पढ़ाया जाए.लेकिन आखिर इसे पूरक शैक्षिक सामग्री के तौर पर पेश करने और उसमें विभाजन के लिए जिन्ना और माउंटबेटन के साथ कांग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराने का क्या मतलब? सत्ता चाहे कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, इतिहास बदलने की कोशिश हमेशा अधूरी और संदिग्ध रहती है।

 

वास्तविक इतिहास हमें यही सिखाता है कि भारत का विभाजन औपनिवेशिक नीतियों और जिन्ना की सांप्रदायिक राजनीति का परिणाम था, न कि कांग्रेस की महत्वाकांक्षा का। इसलिए यह आवश्यक है कि इतिहास को न्यायपूर्ण और संतुलित दृष्टि से पढ़ाएं। विभाजन के पन्नों से सीखकर हमें आगे बढ़ना चाहिए, न कि उन्हें आज की राजनीति का हथियार बनाना चाहिए। कांग्रेस को दोषी ठहराना आसान है, लेकिन सच्चाई यही है कि उसने उस दौर में देश की एकता और भविष्य की रक्षा के लिए कठिन निर्णय लिया। इतिहास का मूल्यांकन उसी समय की परिस्थितियों के आलोक में होना चाहिए, न कि आज की राजनीतिक सुविधा के आधार पर।

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