वाराणसी। ज्ञानवापी में नया मंदिर बनाने और हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने को लेकर वर्ष 1991 में दाखिल मुकदमे में विजय शंकर रस्तोगी को वादमित्र के पद से हटाने की प्रार्थना पत्र को सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) भावना भारतीय की अदालत ने पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया।
इस मुकदमे में वादी पक्षकार रहे हरिहर पांडेय की पुत्रियों की ओर से पैरवी कर रहे वकील आशीष कुमार श्रीवास्तव ने 31 मई को अदालत में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। तीनों बहनों ने दिवंगत पिता के स्थान पर पक्षकार बनाने की पहले से लंबित प्रार्थना पत्र पर सुनवाई चल रही थी। इस बीच इनकी ओर से 31 मई को वादमित्र पद से विजय शंकर रस्तोगी को हटाने का भी प्रार्थना पत्र दिया गया।
उनकी ओर से दलील दी गई थी कि विजय शंकर रस्तोगी एक निजी ट्रस्ट के पदाधिकारी हैं और वे इस वाद में पक्षकार नहीं हो सकते हैं। प्राइवेट ट्रस्ट अपनी निजी संपत्ति के लिए ही मुकदमा लड़ सकता है आम जनमानस का नहीं। यह वाद आम हिन्दू जनसामान्य का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में विजय शंकर रस्तोगी जरूरी पक्षकार नहीं हैं। जबकि वाद के पक्षकार रहे हरिहर पांडेय की तीनों पुत्रियां जरूरी पक्षकार हैं।
इस प्रार्थना पत्र पर वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आपत्ति करते हुए दलील दी थी कि किसी भी प्रार्थना पत्र के निरंतरता में कोई अन्य प्रार्थना पत्र देने का प्रावधान नहीं है। यह दोनों प्रार्थना पत्र निरंतरता में दी गई है जो पोषणीय नहीं है। वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी को हटाने की मांग संबंधित प्रार्थना पत्र निरस्त करने के आदेश पर वकील आशीष कुमार श्रीवास्तव ने अदालत में एक अन्य प्रार्थना पत्र दिया है।